2014-12-13

क्यों बच्चियों की फिक्र ज्यादा होती है

क्यों बच्चियों की फिक्र ज्यादा होती है

एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई।

उसके चेहरे पर आक्रोश साफ दिखाई दे रहा था।
उसके साथ आए उसके परिजनों ने उसको बिठाने की कोशिश की, लेकिन बालिका नहीं मानी।
संत ने पूछा......  बोलो बालिका क्या बात है?
बालिका ने कहा, महाराज घर में लड़के को हर प्रकार की आजादी होती है। वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती।
इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है। यह मत करो, यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ। आदि आदि।
संत ने उसकी बात सुनी और मुस्कुराने लगे।
उसके बाद उन्होंने कहा, बालिका तुमने कभी लोहे की दुकान के बाहर पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं?
ये गार्डर सर्दी, गर्मी, बरसात, रात दिन इसी प्रकार पड़े रहतें हैं।
इसके बावजूद इनकी कीमत पर कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों की फितरत कुछ इसी प्रकार की है समाज में।
अब तुम चलो एक जोहरी की दुकान में। एक बड़ी तिजोरी, उसमे एक छोटी तिजोरी। उसके अन्दर कोई छोटा सा चोर खाना। उसमे से छोटी सी डिब्बी निकालेगा। डिब्बी में रेशम बिछा होगा। उस पर होगा हीरा।
क्योंकि वह जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी।
समाज में लड़कियों की अहमियत कुछ इसी प्रकार की है। हीरे की तरह।
जरा सी खरोंच से उसका और उसके परिवार के पास कुछ नहीं रहता। बस यही अन्तर है लड़कियो और लड़कों में।
इस से साफ है कि परिवार लड़कियों की परवाह अधिक करता है।
बालिका को समझ में आगया क्यों बच्चियों की फिक्र ज्यादा होती है...

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