काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक महामना ने इसके लिए चंदा एकत्र किया था, जो उस समय करीब एक करोड़ 64 लाख रुपए हुआ था।
काशी नरेश ने जमीन दी थी तो दरभंगा नरेश ने 25 लाख रुपए से सहायता की थी। वहीं हैदराबाद के निजाम ने कहा कि इस विवि से पहले ‘हिंदू’ शब्द हटाओ फिर दान दूंगा।
निजाम की मां को जब पता चला तो वह बंद बग्घी में पहुंची और करीब 4 लाख रुपए की बोली लगाकर निजाम का जूता खरीद लिया।
उन्हें लगा कि उनके बेटे की इज्जत बीच शहर में नीलाम हो रही है।
‘मियां की जूती, मियां के सर’
मुहावरा उसी घटना के बाद से प्रचलित हो गया।
महामना (मदन मोहन मालवीय)
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