2014-12-12

रिश्तों का बाज़ार

 कदम रुक गए जब पहुंचे हम रिश्तों के बाज़ार में...
 बिक रहे थे रिश्ते खुले आम व्यापार में..
 कांपते होठों से मैंने पुछा, 

"क्या भाव है भाई इन रिश्तों का?"

 दूकानदार बोला:
 "कौनसा लोगे..?
 बेटे का ..या बाप का..?
 बहिन का..या भाई का..?
 बोलो कौनसा चाहिए..?
 इंसानियत का.या प्रेम का..?
 माँ का..या विश्वास का..?
 बाबूजी कुछ तो बोलो कौनसा चाहिए.चुपचाप खड़े हो कुछ बोलो तो सही...
 मैंने डर कर पुछ लिया दोस्त का..?
 दुकानदार नम आँखों से बोला:
 "संसार इसी रिश्ते पर ही तो टिका है ..,माफ़ करना बाबूजी ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..
इसका कोई मोल नहीं लगा पाओगे,
 और जिस दिन ये बिक जायेगा... उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा..."
सभी मित्रों को समर्पित..

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