राग और द्वेष मनुष्य के दो मुख्य शत्रु
हम अक्सर अपनी
इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही कार्य करते हैं। हमारा मन जिस भी वस्तु को पाना चाहता
है हम उसे पाने के लिए प्रयत्न करने लग जाते हैं। पर विचार करिये मन किस वस्तु की
इच्छा करता है। संसार में जितने भी पदार्थ है उन सभी से तो मन का संपर्क नहीं होता
इस कारण जो पदार्थ हमारे ज्ञान में नहीं आता हम उसकी इच्छा नहीं कर सकते।
जिसके
बारे में मात्र सुन ही रखा हो की किस प्रकार का पदार्थ होता है पर कैसा है ,सुखद या दुखद ,यदि यही पता न हो तो फिर मन में कोतुहल भले
ही हो उसे पाने के लिए प्रयत्न शायद ही कोई करे , जो पदार्थ संपर्क में आते है उनमें से भी हम सिर्फ जिनसे
पहले सुख मिला था उन्हें ही पाने का प्रयत्न करते है -इसे " राग " कहते हैं।
हाँ जिन वस्तुओं
से हमें पहले दुःख मिला था उनसे दूर जाने के या उन्हें अपने से दूर करने के प्रयास भी हम करते हैं इसे " द्वेष " कहते हैं।
मनुष्य के जीवन को
व्यस्त बनाने का कम यही दो करते नजर आते हैं
राग और द्वेष
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