श्वास-प्रश्वास से रोग-मुक्ति
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हमारा शरीर पंचतत्व – पृथ्वी,जल,वायु और आकाश से निर्मित है| प्राकृतिक चिकित्सा भी इन्ही पंचतत्वों पर आधारित है| प्रदूषित आहार,प्रदूषित विचार व प्रदूषित रहन-सहन ने व्यक्ति के स्वास्थ्य को अस्त-व्यस्त कर दिया है |
अक्सर लोग कहते हैं कि प्रतिस्पर्धा के इस युग में व्यक्ति को साँस लेने की फुर्सत नहीं है | वास्तव में बहुत कुछ हद तक यह सत्य है | कितने लोग ऐसे होंगे जिनका ध्यान दिन में कभी अपने श्वास-प्रश्वास पर पहुंचता होगा ? हम स्वयं का ही अवलोकन कर लें – क्या हम सजकतापुर्वक श्वास लेते हैं?
स्वस्थ्य रहने का मंत्र -श्वासों को अपने नियंत्रण में रखने में है परन्तु हम स्वयं श्वासों के नियंत्रण में हैं | चिंता,क्रोध,विषय-वासना आदि के समय यदि अपनी श्वास का अवलोकन करें तो वे असामान्य मिलेंगी | इस समय यदि श्वासों को नियंत्रित कर लें तो यह उद्वेग अपने आप नियंत्रित हो जायेंगे |
ईर्ष्या,क्रोध,दुःख,शोक, चिंता आदि द्वारा असामान्य हुआ श्वसन शरीर के अन्तःस्रावी-तंत्र को असंतुलित कर देता है परिणामस्वरूप अतःस्रावी – तंत्र हारमोंस की कम या अधिक मात्रा अथवा हानिकारक हार्मोन स्रवित करना प्रारंभ कर देता है जिससे शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं |
आक्सीजन , जिसे हम श्वास के माध्यम से प्रतिदिन भोजन एवं जल से लगभग सात गुना अधिक ग्रहण करते हैं |श्वास द्वारा खींची गई वायु फेफड़ों में १५ वर्ग फुट से अधिक का चक्कर लगाकर गंदे रक्त को शुद्ध एवं स्वच्छ कर देती है| रक्त शुद्धिकरण के दौरान उत्पन्न कचरा कार्बन डाईआक्साइड एवं अन्य विषैले तत्वों के साथ प्रश्वास के रूप में बाहर निकलता है | परन्तु उथली श्वास से यह प्रक्रिया सुचारू ढंग से नहीं हो पाती और रोगों का कारण बनती है |
श्वास:-
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एक वयस्क व्यक्ति एक मिनट में सामान्यतः १८-२० बार श्वास लेता है | श्वास के दौरान ली गयी वायु में ऑक्सीजन मात्र २० प्रतिशत रहती है जिसमें भी हम मात्र ४ प्रतिशत ऑक्सीजन का ही उपभोग कर पाते हैं बाकी १६ प्रतिशत ऑक्सीजन,नाइट्रोजन आदि गैसों के साथ वापस आ जाती है |
ऑक्सीजन के सही उपभोग से रोग-मुक्ति कैसे ?
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ऑक्सीजन बड़ा उग्रदाह्क है | शुद्ध ऑक्सीजन अन्य गैसों के संयोग से लोहे जैसी कठोर धातु को भी क्षण -मात्र में पिघला देती है | किसी भी धातु में जंग लगना,वस्तुओं का सड़ना,आग का जलना सभी में ऑक्सीजन की संयोजन की क्रिया है| ऑक्सीजन के संयोग के फलस्वरूप गन्दा नीला रक्त क्षणमात्र में शुद्ध होकर लाल हो जाता है | यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि ऑक्सीजन कि दहनशीलता जल या जलवाष्प के संपर्क मेंआने से समाप्त हो जाती है | श्वास के साथ नाईट्रोजन एवं जल वाष्प भी अन्दर जाती है | इसी कारण ऑक्सीजन हमें जलाती नहींअपितु जीवन प्रदान करती है |
ऑक्सीजन प्रकाश और ताप दोनों को उत्पन्न करती है | ऑक्सीजन के अभाव में शरीर का ठंडा [मृत] होना निश्चित है | श्वास के द्वारा प्राप्त ऑक्सीजन को रक्त शरीर कि प्रत्येक कोशिका में पहुँचाकरउन्हें जीवन प्रदान करता है | अर्थात प्रत्येक कोशिका श्वसन करती है| इसी प्रक्रिया को आक्सीकरण कहते हैं |
उथली श्वास लेने या जल्दी-जल्दी श्वास-प्रश्वास से सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन नहीं पहुँच पाती फलस्वरूप वहां कि कोशिकाएं निष्क्रिय होने लगती है जहाँ पर पूरी मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुँच पाती |
प्रयोगों से यह सिद्ध हो चूका है कि ऑक्सीजन को श्वास कि सही विधि से लेने पर किसी भी तरह का रोग,दर्द तो क्या ट्यूमर तक को समाप्त किया जा सकता है |
रोग-मुक्ति हेतु श्वास-प्रश्वास के कुछ प्रयोग :-
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प्रथम चरण – ५ मिनट -
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किसी शांत-शुद्ध स्थान पर जहाँ पर शुद्ध वायु मिल रही हो,शांत-स्थिर होकर बैठ जाएँ | रीढ़ कि हड्डी सीधी रहे | धीरे-धीरे खूब गहरी श्वास लें| श्वास इतने धीरे लें कि स्वयं को भी सुनाई न पड़े |
आराम से श्वास को जितनी देर अन्दर रोक सकते हैं रोके रखें, तत्पश्चात धीरे-धीरे श्वास को बाहर निकालें |
अब जितनी देर बिना श्वास लिए आराम से रुक सकते हैं श्वास को बाहर ही रोके रखें, तत्पश्चात पुनः धीरे-धीरे गहरी लम्बी श्वास भरें एवं पहले कि प्रक्रिया दोहराएँ |
द्वितीय चरण – ५ मिनट -
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श्वास को अन्दर-बाहर रोकना बंद कर दें परन्तु गहरी लम्बी श्वास लेते व् छोड़ते रहें |
तृतीय चरण -५ मिनट -
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मन को श्वास-प्रश्वास पर लगा दें | अर्थात अपने मन को श्वास के साथ ही अन्दर ले जाएँ एवं श्वास के साथ बाहर लायें | दूसरे शब्दों में -श्वास को अन्दर-बाहर आते-जाते हुए देखें |
चतुर्थ चरण – १० मिनट -
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अब शरीर के रोग-ग्रस्त स्थान का अन्दर ही अन्दर अवलोकन करें |
गहरी लम्बी श्वास खींचकर अपना ध्यान एवं श्वास दोनों को रोग-ग्रस्त स्थान पर केन्द्रित करें व अनुभव करें कि श्वास में उपस्थित ऑक्सीजन से रोग-ग्रस्त अंग में आक्सीडेशन हो रहा है | ऐसा महसूस करें कि श्वास रोग-ग्रस्त स्थान से जितने भी विष हैं, अपने में मिला रही है |
श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालें एवं ऐसा अनुभव करें कि रोग-ग्रस्त स्थान से रोग के जो कारण हैं वे भी बाहर निकल रहे हैं |
प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के साथ उपर्युक्त अनुभव करें | आप देखेंगे कि इस आधा घंटे के प्रयोग से कुछ ही दिनों में रोग समाप्त होना प्रारंभ हो जायेगा |
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