2014-12-05

मां एक कविता

मां एक कविता 

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लेती नहीं दवाई मम्मी ,
जोड़े पाई-पाई मम्मी ।
दुःख थे पर्वत, राई मम्मी
हारी नहीं लड़ाई मम्मी ।
इस दुनियां में सब मैले हैं
किस दुनियां से आई मम्मी ।
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरमागर्म रजाई मम्मी ।
जब भी कोई रिश्ता उधड़े
करती है तुरपाई मम्मी ।
बाबू जी तनख़ा लाये बस
लेकिन बरक़त लाई मम्मी ।
बाबूजी थे सख्त  मगर ,
माखन और मलाई मम्मी ।
बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीरथ हो आई मम्मी ।
नाम सभी हैं गुड़ से मीठे
मां जी, मैया, माई, मम्मी ।
सभी साड़ियाँ छीज गई थीं
मगर नहीं कह पाई मम्मी ।
मम्मी  से थोड़ी - थोड़ी
सबने रोज़ चुराई मम्मी ।
घर में चूल्हे मत बाँटो रे
देती रही दुहाई  मम्मी ।
बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ-साथ मुरझाई मम्मी ।
रोती है लेकिन छुप-छुप कर
बड़े सब्र की जाई मम्मी ।
लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई मम्मी ।
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब ज़ेवर दे आई मम्मी ।
मम्मी से घर, घर लगता है
घर में घुली, समाई मम्मी ।
बेटे की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई मम्मी ।
दर्द बड़ा हो या छोटा हो
याद हमेशा आई मम्मी ।
घर के शगुन सभी मम्मी से,
है घर की शहनाई मम्मी ।
सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई मम्मी ।



अज्ञात
(अज्ञात कवि महोदय को बहुत बहुत साधुवाद।)

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