कभी करवा चौथ पत्नी के, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है।
आज भी करवा चौथ का त्यौहार या व्रत पूरे उत्साह से और ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। जिन लोगों को इस व्रत पर्व के बारे में मालूम नहीं था। वे शादी की सालगिरह के प्रति कम ही जागरुक होते थे। कुछ संपन्न शिक्षित और कुलीन परिवारों में दांपत्य के पचास साल पूरे हो जाने पर समारोह मनाया जाता था। आज भी मनाया जाता है। उस समारोह में दंपत्ति के नाती-पोते भी शामिल होते हैं। दंपत्ति के निजी संबध या जीवन की अहमियत सिर्फ इतनी है कि वह खुद के लिए नहीं हैं। मर्यादा में रहते हुए उनके रुझान, पूरे परिवार पर ही केंद्रित होते थे।
सुहाग की कुशल कामना का पर्व करवा चौथ तो आज भी कायम है, लेकिन बदले स्वरूप के साथ। यानी एक वर्ग ऐसा भी है, जो करवा चौथ पर करवा, बायना, परंपरागत पकवान और सात भाइयों की बहन की कहानी से दूर होते हुए भी उसे बस फीलिंग्स के साथ मना रहा है।
पति का भी व्रत रखना परंपरा का विस्तार है। इस पर्व को अब सफल और खुशहाल दाम्पत्य की कामना के लिए किया जा रहा है। यह चलन और पक्का होता जा रहा है। इसीलिए करवा चौथ अब केवल लोक-परंपरा नहीं रह गई है।
पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है।हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं।
कभी करवा चौथ पत्नी के, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है।
परंपरा का विस्तार
करवा चौथ के दिन अब पत्नी ही नहीं पति भी व्रत करते हैं। यह परंपरा का विस्तार है। करवा चौथ को अब सफल और खुशहाल दाम्पत्य की कामना के लिए किया जा रहा है। करवाचौथ अब केवल लोक-परंपरा नहीं रह गई है। पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है। हमारे समाज की यही ख़ासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। कभी करवाचौथ पत्नी के, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है। आधुनिक होते दौर में हमने अपनी परंपरा तो नहीं छोड़ी है, अब इसमें ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। दोनों के बीच अहसास का घेरा मजबूत होता है, जो रिश्तों को सुरक्षित करता है।
व्रत सिर्फ पति के लिए या स्त्री पुरुष की बराबरी का मानने के लिए पति द्धारा पत्नी के लिए भी करने तक ही सीमित नहीं है। पुरुष चाहें तो वे पत्नी या प्रेयसी के लिए व्रत रखें, लेकिन यह चलन करवा- चौथ की भावना को सतही तौर पर ही छूता है। पति द्धारा व्रत करने को परंपरा के विस्तार के रुप में देखना चाहिए। इस के पीछे सफल और खुशहाल दाम्पत्य की भावना भी है। चलन और पक्का होता जा रहा है और करवाचौथ में पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है। त्योंहार बहुत कुछ भावनाओं पर केंद्रित हो गया हैं। करवाचौथ के मर्म तक नहीं पहुंच पाने के कारण यह पत्नी के, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक भी हुआ करता होगा लेकिन अब दोनों के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की गरमाहट से भी दमकने लगा है।
करवाचौथ महज एक व्रत नहीं है, बल्कि सूत्र है, विश्चास का कि हम साथ साथ रहेंगे, आधार है जीने का कि हमारा साथ ना छूटे। आज हम कितना भी आधुनिक हो जायें, पर क्या ये आधुनिकता हमारे बीच के प्यार को मिटाने के लिये होनी चाहिये?
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