2015-03-05

धरती पराई लगने लगे


इतनी ऊँचाई न देना प्रभु कि, धरती पराई लगने लगे .
इनती खुशियाँ भी न देना कि, दुःख पर किसी के हंसी आने लगे .

नहीं चाहिए ऐसी शक्ति जिसका, निर्बल पर प्रयोग करूँ .
नहीं चाहिए ऐसा भाव कि, किसी को देख जल-जल मरूँ

ऐसा ज्ञान मुझे न देना, अभिमान जिसका होने लगे .
ऐसी चतुराई भी न देना जो, लोगों को छलने लगे .


 खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की
आप  मुझे  पहचानते  हो,  बस  इतना  ही  काफी  है।

अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे.
क्यों  की  जीसकी  जीतनी, जरुरत  थी  उसने उतना  ही पहचाना  मुझे।

ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है,
शामें  कटती  नहीं, और  साल गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!

एक  अजीब  सी दौड़  है  ये  ज़िन्दगी,
जीत  जाओ  तो  कई अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
और  हार  जाओ  तो  अपने ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।.....

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