नेताजी की होली
नेताजी की 'होली'
रंग बदलने की कला में निपुण,
रंगबाज़ी विशेष जिनका गुण।
देश लूटने को मदहोश,
वादों की नौका लिए सफेदपोश,
एक नेताजी, होली खेलती भीड़ में शरीक हो गए,
प्रश्न-पत्र सा, मानों जनता में Leak हो गए।
लोग नेताजी के महान तेवर देख चौंके,
इस शश्क्य को देख कुत्ते भी भौंके।
तभी भीड़ से एक आदमी बोला,
"नेताजी, आज बिन मौसम ही नियत आपकी डोली है!"
नेताजी बोले, "बुरा न मनो होली है!"
अबीर-गुलाल से शुरुआत हुई,
पिचकारी भर रंगों की बरसात हुई।
फिर 'अतिथि देवो भवः' की सभ्यता गई निभाई,
मिलकर सब ने नेताजी की होली मनाई।
'शर्मा जी' का बेटा, 'ग्रीस' का डिब्बा लाया,
'यादव जी' नें पास पड़ा 'गोबर' उठाया।
'श्रीवास्तव जी' नें और भी कमाल किया,
महीने भर के सड़े 'टमाटरों' का इस्तेमाल किया।
'सिंह जी' के पोते नें गजब ही कर दिया,
नाली में जो करना था, नेताजी पर कर दिया।
इतने में नेताजी थक के चूर थे,
पर कहते क्या, मजबूर थे।
घंटों तक चली इस पूजा-आरती में,
भक्तगण पीछे और नेताजी आगे,
किसी तरह नेताजी, दुम दबाकर भागे।
रंग छुड़ाने में तो हुआ और भी बुरा हाल,
फिर भी रह गया कुछ काला, कुछ पीला,
कुछ नीला, कुछ लाल।
उसी शाम, News Channel का एक पत्रकार,
पहुँचा लेने नेताजी का साक्षात्कार।
पत्रकार नें किया सवाल,
"नेताजी, कैसी रही आपकी होली?"
नेताजी बोले, "होली को मारो गोली!
अरे! तुम कैसे पत्रकार हो,
बातें करते बेकार हो।
देखते नहीं, मेरे चेहरे का कितना बुरा हाल है,
ये "Chemical युक्त" रंग लगाया है,
मुझे तो लगती इसमें 'विपक्ष दलों' की चाल है।"
पत्रकार मुस्कुराया......बोला,
"नेताजी आपको इस तरह रंग खेलने की क्यों पड़ी है?"
नेताजी बोले, "अरे मूरख्! ये चुनाव की घड़ी है।
मैं तो एक नायक का फर्ज निभाने गया था,
आम जनता संग खुशियाँ मनाने गया था।
पर ये बता, क्या इस तरह होली खेलना है सही?"
पत्रकार बोला, "हाँ जी, क्यों नहीं!
जनाब! हम तो आम लोग हैं,
सिर्फ रंग खेलते हैं,
पर आप......
हमारी भावनाओं से खेलते हैं।
ये बताइए, क्या पिछले ५ वर्षों में कभी,
हमारा हाल लेने आये हैं?
योजनाओं के अलावा भी,
क्या कभी कुछ लाये हैं?"
नेताजी की साँसे रुक गईं,
निगाहें झुक गईं"
निकल नहीं रही थी बोली,
'होली' में हो गई,
नेताजी की 'होली'।
पत्रकार बोला, "मान्यवर आप जो कर रहे हैं न,
ये नायक का ढंग नहीं है,
और जिसे छुड़ाने में असमर्थ रहे हैं न,
वो कोई मामूली रंग नहीं है।
ये 'लाल' और कुछ नहीं 'महंगाई' है,
आपने नहीं, तो फिर किसने फैलाई है?
गाल पर जो 'पीला' है,
वो 'बेरोजगारी' आप ही की लीला है।
माथे पर ये 'नीला', 'अत्याचार' है,
और...ऊपर से नीचे तक ये 'काली' छीटें,
'भ्रष्टाचार' है।
नेताजी, ये रंग आपकी पहचान हैं,
इन पर साबुन-Surf लगाना बेकार है।।
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