2015-03-27

इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

धारा 66 ए  वेब पर अपमानजनक सामग्री डालने पर पुलिस को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति देती थी। कोर्ट ने कहा कि आईटी एक्‍ट की धारा 66 ए से लोगों की जानकारी का अधिकार सीधा प्रभावित होता है। कोर्ट ने कहा कि धारा 66 ए संविधान के तहत उल्लिखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को साफ तौर पर प्रभावित करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की धारा 66ए को असंवैधानिक करार देते हुए इसे निरस्त कर दिया। इस धारा के तहत पुलिस को यह अधिकार दिया गया था कि वह सोशल साइट्स पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले को गिरफ्तार कर सकती है। इस धारा के तहत अधिकतम तीन साल की सजा के प्रावधान हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा  सूचना प्रौद्योगिकी कानून के इस प्रावधान से आम आदमी के जानने के अधिकार का भी उल्लंघन होता है। शीर्ष अदालत ने इस धारा के प्रावधानों को संदिग्ध करार देते हुए कहा, जो बातें एक व्यक्ति के लिए अपमानजनक हो सकती हैं, संभव है, ये बातें दूसरे के लिए अपमानजनक न हो।

न्यायालय ने यह भी कहा कि वह केंद्र सरकार के इस आश्वासन से आश्वस्त नहीं हो सकता कि पुलिस इसका दुरूपयोग नहीं करेगी। धारा 66ए संविधान के अनुच्छेद 19(2) के दायरे से बाहर है और यह समग्र रूप से निरस्त करने लायक है। इस धारा के निरस्त होने से अब सोशल मीडिया पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए पुलिस संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकेगी। 

केंद्र सरकार ने धारा 66ए को निरस्त करने वाली याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध किया था कि ये प्रावधान आपत्तिजनक सामग्रियों को इंटरनेट पर अपलोड करने से लोगों को रोकने के लिए किए गए हैं। 

सरकार की दलील थी कि ऎसी सामग्रियों से कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है और लोगों में क्रोध और हिंसा के भाव जागृत हो सकते हैं। सरकार ने शीर्ष अदालत में दलील दी थी कि इंटरनेट का प्रभाव व्यापक है और प्रिंट और टीवी की तुलना में इस मीडिया पर अधिक प्रतिबंध होना चाहिए।

उसने कहा था कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह इंटरनेट संस्थागत तरीके से नहीं चलते हैं, इसलिए इस पर अंकुश रखने के लिए कोई प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। सरकार का यह भी कहना था कि केवल इसके दुरूपयोग के कारण ही इसे निरस्त कर देना उचित नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में लगाई जाने वाली IT एक्ट की धारा 66 A को रद्द कर दिया है। न्यायलय ने इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया।

इस फैसले के बाद फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर पाएगी। न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण फैसला सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े इस विवादास्पद कानून के दुरुपयोग की शिकायतों को लेकर इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया।

न्यायालय ने प्रावधान को अस्पष्ट बताते हुए कहा, ‘किसी एक व्यक्ति के लिए जो बात अपमानजनक हो सकती है, वो दूसरे के लिए नहीं भी हो सकती है।’ कोर्ट ने कहा कि सरकारें आती हैं और जाती रहती हैं लेकिन धारा 66 ए हमेशा के लिए बनी रहेगी। न्यायालय ने यह बात केंद्र के उस आश्वासन पर विचार करने से इनकार करते हुए कही जिसमें कहा गया था कि कानून का दुरुपयोग नहीं होगा। न्यायालय ने हालांकि सूचना आईटी एक्‍ट के दो अन्य प्रावधानों को निरस्त करने से इनकार कर दिया जो वेबसाइटों को ब्लॉक करने की शक्ति देता है।

इस मसले पर लंबी सुनवाई के बाद 27 फ़रवरी को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भी कई बार इस धारा पर सवाल उठाए थे। वहीं केंद्र सरकार ने एक्ट को बनाए रखने की वकालत की थी। केंद्र ने कोर्ट में कहा था कि इस एक्ट का इस्तेमाल गंभीर मामलों में ही किया जाएगा। 2014 में केंद्र ने राज्यों को एडवाइज़री जारी कर कहा था कि ऐसे मामलों में बड़े पुलिस अफ़सरों की इजाज़त के बग़ैर कार्रवाई न की जाए।

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