जिंदगी बनाने के लिए, घर से दूर निकल आया हूँ,
सपनो को पाने की चाहत में, अपनों को दूर छोड़ आया हूँ,
सुख साधन कितने ही समेट लूं, मेरा घर आज भी याद आता है,
चाहूं तो सारी दुनिया को नाप लूं, आखिर में माँ के हाथ का खाना याद आता है,
बीमार जब होता हूँ तो इलाज तो मिल जाता है,
अब तो बस कोसता हूँ अपने आप को, की क्या करने चला आया हूँ,
जिंदगी बनाना चाहता था मैं और जिंदगी से ही दूर चला आया हूँ...
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मुझे आता नहीं अपने जख्मों की नुमाइश करना
तन्हा तड़पता हूँ, रोता हूँ और सो जाता हूँ
"माँ" तू होती तो आँचल में तेरे सुकून से रो लेता-
तू सहलाती प्यार से मैं जख्म सारे खो देता..
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घर मेरा एक बरगद है मेरे पापा जिसकी जड़ है
घनी छाँव है मेरी माँ यहीं है मेरा आसमाँ.
पापा का है प्यार अनोखा जैसे शीतल हवा का झोंका
माँ की ममता सबसे प्यारी सबसे सुन्दर, सबसे न्यारी.
हाथ पकड़ चलना सिखलाते पापा हमको खूब घुमाते
माँ मलहम बनकर लग जाती जब भी हमको चोट सताती.
माँ पापा बिन दुनिया सूनी जैसे तपती आग की धूनी
माँ ममता की धारा है पिता जीने का सहारा
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