पिछवाड़े के कमरे का खाली सा बिस्तर...
बिना सिलवटें गर्द भरी वो सूनी चादर...
पड़ी हुई मायूस छतो पे कटी पतंगें ...
अलमारी मे पन्नी के दो चार तिरंगे...
घड़ियों की टिक टिक भी कितनी खलती होगी...
प्यारी ममता, याद मुझे जब करती होगी....
मुरझाया सा प्यार, किसी की सूनी बाहें...
दरवाजे की दस्तक को, बेचैन निगाहें...
सोच रहा, वो चेहरा कितना पीला होगा...
तब यादों की बेल, कभी मन चढ़ती होगी...
प्यारी ममता, याद मुझे जब करती होगी....
शाम, सामने मैदानों मे नन्हे मेले..
खट्टी जामुन वाले रस्ते चलते ठेले...
पीपल के आँगन मे फैले सूखे पत्ते...
अलमारी के इक कोने में मेरे लत्ते...
देख देख ममता, मन मे घुट मरती होगी...
प्यारी ममता, याद मुझे जब करती होगी....
दीवाली पे बाकी घर जब सजते होंगे...
गली मे जब होली के गाने बजते होंगे...
राखी पे जब बहना छुप छुप रोती होगी...
लड़ती होगी सबसे, भूखी सोती होगी...
राह मेरे आने की, माँ तब तकती होगी...
प्यारी ममता, याद मुझे जब करती होगी.
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