सौंधी खुशबू
Saundhi Khushbu
मेरी पत्नी ने कुछ दिनों पहले घर की छत पर कुछ गमले रखवा दिए। फिर किसी नर्सरी से कुछ पौधे मंगवा कर छत पर ही उसने एक छोटा सा गार्डेन बना लिया। वो नियमित रूप से उनमें पानी देती है और माली को बुला कर खाद वगैरह डलवा देती है।
शुरू शुरू में मुझे उसकी इस हरकत पर हंसी आई लेकिन ये सोच कर चुप रहा कि चलो कहीं तो अपना दिल लगा रही है। लेकिन पिछले दिनों मैं छत पर गया तो ये देख कर हैरान रह गया कि कई गमलों में फूल खिल गए हैं, नींबू के पौधे में दो नींबू भी लटके हुए हैं, और दो चार हरी मिर्च भी लटकी हुई नज़र आई। मैं कुछ देर वहीं छत पर बैठ गया। उन पौधों की ओर देखता रहा। अचानक मैंने देखा कि पिछले हफ्ते उसने बांस का जो पौधा गमले में लगाया था, उस गमले को घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी।
गमला भारी था, और उसे ऐसा करने में मुश्किल आ रही थी। मैंने उसे रोकते हुए कहा कि गमला वहीं ठीक है, तुम उसे क्यो घसीट रही हो?
पत्नी ने मुझसे कहा कि यहां ये बांस का पौधा सूख रहा है, इसे खिसका कर इस पौधे के पास कर देते हैं।
मैं हंस पड़ा और कहा, "अरे पौधा सूख रहा है तो खाद डालो, पानी डालो इसे खिसका कर किसी और पौधे के पास कर देने से क्या होगा?"
पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा, "ये पौधा यहां अकेला है इसलिए मुर्झा रहा है। इसे इस पौधे के पास कर देंगे तो ये फिर लहलहा उठेगा। पौधे अकेले में सूख जाते हैं, लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाए तो जी उठते हैं।"
मेरी पत्नी बोल रही थी और मैं सुन रहा था।
क्या सचमुच पौधे अकेले में सूख जाते हैं?
क्या सचमुच पौधे को पौधे का साथ चाहिए होता है?
बहुत अजीब सी बात थी। मेरे लिए ये सुनना ही नया था। लेकिन सुन रहा था और फिर सोच रहा था।
पत्नी गमले को खींच कर दूसरे गमले के पास करके खुश हो गई और मैं उस पौधे की ओर देख कर कहीं खो गया। एक-एक कर कई तस्वीरें आखों के आगे बनती चली गईं। मां की मौत के बाद पिताजी कैसे एक ही रात में बूढ़े, बहुत बूढ़े हो गए थे। हालांकि मां के जाने के बाद सोलह साल तक वो रहे, लेकिन सूखते हुए पौधे की तरह। मां के रहते हुए जिस पिताजी को मैंने कभी उदास नही देखा था, वो मां के जाने के बाद खामोश से हो गए थे। हालांकि हमारे साथ वो हमारी तरह ही जीते थे, लेकिन कई बार मैंने उन्हें रात के अंधेरे में अकेले सुबकते हुए सुना था।मेरी पत्नी कह रही थी, "अकेले में पौधे सारी रात सुबकते हैं।"
वो कह रही थी कि ये तो तुमने चौथी कक्षा में ही पढ़ लिया होगा कि पौधों में भी जान होती है, और जब जान होती है तो ये हंसते और रोते भी हैं। देखो न मिर्च कैसी लहलहा रही है, नींबू इस छोटे से गमले में भी कैसा फल रहा है। ये सब साथ का असर है। मिर्च के साथ नींबू और नींबू के साथ तरोई, तरोई के साथ सफेद फूल…
बांस का पौधा जरा अलग सा था तो इसे माली ने अकेले में रख दिया था। माली ने ये सोचने की जहमत भी नहीं उठाई कि इतना छोटा पौधा अकेले मेें कैसे रह सकता है? देखो तो सही ये अकेला पौधा कितना डरा हुआ सा लग रहा है? बेचारा डर के मारे सूख रहा है। देखना कल से ये पौधा कैसे हरा नजर आने लगता है।मुझे पत्नी के विश्वास पर पूरा विश्वास हो रहा था। लग रहा था कि सचमुच पौधे अकेले में सूख जाते होंगे।
बचपन में मैं एक बार बाज़ार से एक छोटी सी रंगीन मछली खरीद कर लाया था और उसे शीशे के जार में पानी भर कर रख दिया था।मछली सारा दिन गुमसुम रही। मैंने उसके लिए खाना भी डाला, लेकिन वो चुपचाप इधर-उधर पानी में अनमना सा घूमती रही। सारा खाना जार की तलहटी में जाकर बैठ गया, मछली ने कुछ नहीं खाया। दो दिनों तक वो ऐसे ही रही, और एक सुबह मैंने देखा कि वो पानी की सतह पर उल्टी पड़ी थी। इस एक घटना के बाद मेरे मन से मछली पालने की इच्छा हमेशा के लिए खत्म हो गई। लेकिन आज मुझे घर में पाली वो छोटी सी मछली याद आ रही थी।
बचपन में किसी ने मुझे ये नहीं बताया था कि एक मछली कभी बहुत दिनों तक नहीं जीती। अगर मालूम होता तो कम से कम दो या तीन या और ढेर सारी मछलियां खरीद लाता और मेरी वो प्यारी मछली यूं तन्हा न मर जाती।
मुझे लगता है कि संसार में किसी को अकेलापन पसंद नहीं ।
आदमी हो या पौधा, हर किसी को किसी न किसी के साथ की ज़रुरत होती है।
आप अपने आसपास झांकिए, अगर कहीं कोई अकेला दिखे तो उसे अपना साथ दीजिए, उसे मुर्झाने से बचाइए। अगर आप अकेले हों, तो आप भी किसी का साथ लीजिए, आप खुद को भी मुर्झाने से रोकिए। पहले भी लिखा था, आज दुहरा रहा हूं कि अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है।
गमले के पौधे को तो हाथ से खींच कर एक दूसरे पौधे के पास किया जा सकता है, लेकिन आदमी को करीब लाने के लिए जरुरत होती है रिश्तों को समझने की, सहेजने की और समेटने की।
अगर मन के किसी कोने में आपको लगे कि ज़िंदगी का रस सूख रहा है, जीवन मुर्झा रहा है तो उस पर रिश्तों के प्यार का रस डालिए। खुश रहिए और मुस्कुराइए।
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