2014-10-01

फ्रस्ट्रेटेड लोग Frustrated men

एक  दिन  एक  आदमी  टैक्सी  से  एअरपोर्ट  जा  रहा  था . टैक्सी  वाला  कुछ  गुनगुनाते  हुए  बड़े  इत्मीनान  से  गाड़ी  चला  रहा  था कि अचानक  एक  दूसरी  कार  पार्किंग  से  निकल  कर  रोड  पर  आ  गयी  , टैक्सी  वाले  ने  तेजी  से  ब्रेक  लगायी , गाड़ी  स्किड  करने  लगी  और  बस  एक -आध  इंच  से  सामने  वाली  कार  से  लड़ते -लड़ते  बची .

आदमी  ने  सोचा कि टैक्सी  वाला  कार  वाले  को  भला -बुरा  कहेगा …लेकिन  इसके  उलट  सामने  वाला  ही  पीछे  मुड़  कर  उसे   गलियां  देने  लगा . इसपर  टैक्सी  वाला  नाराज़  होने  की  बजाये  उसकी  तरफ  हाथ  हिलाते  हुए  मुस्कुराने  लगा , और  धीरे -धीरे  आगे  बढ़  गया .

आदमी  ने आश्चर्य से पूछा  “ तुमने  ऐसा  क्यों  किया  ?  गलती  तो  उस  आदमी  की  थी ,उसकी  वजह  से  तुम्हारी  गाडी  लड़  सकती  थी  और  हम होस्पिटलाइज  भी  हो  सकते  थे .!”

“सर  जी ”, टैक्सी  वाला बोला , “ बहुत  से  लोग  गार्बेज  ट्रक  की  तरह  होते  हैं . वे  बहुत  सार  गार्बेज  उठाये  हुए  चलते  हैं ,फ्रस्ट्रेटेड, हर  किसी  से  नाराज़  और  निराशा से भरे …जब  गार्बेज  बहुत  ज्यादा  हो  जाता  है  तो  वे  अपना  बोझ  हल्का  करने  के  लिए  इसे  दूसरों  पर  फेंकने  का  मौका  खोजने  लगते   हैं ,  पर  जब  ऐसा कोई आदमी  मुझे  अपना  शिकार  बनाने की  कोशिश  करता  हैं  तो  मैं बस  यूँही  मुस्कुरा  के  हाथ हिल कर  उनसे  दूरी  बना  लेता  हूँ …किसी को  भी  उनका  गार्बेज  नहीं  लेना  चाहिए  , अगर  ले  लिया  तो  शायद  हम   भी  उन्ही  की  तरह  उसे   इधर  उधर  फेंकने  में  लग  जायेंगे …घर  में ,ऑफिस  में  सड़कों  पर …और  माहौल  गन्दा  कर देंगे , हमें  इन  गार्बेज ट्रक्स  को  अपना  दिन  खराब  नहीं  करने  देना  चाहिए . ज़िन्दगी  बहुत  छोटी  है कि  हम  सुबह  किसी  अफ़सोस  के साथ उठें , इसलिए … उनसे  प्यार  करो  जो  तुम्हारे  साथ अच्छा  व्यवहार  करते  हैं  और  जो  नहीं करते  उन्हें  माफ़  कर  दो .”

Friends, सोचने  की  बात  है  कि  क्या  हम  intentionally garbage trucks को  avoid करते  हैं , या  उससे  भी  बड़ी  बात कि कहीं  हम  खुद   गार्बेज  ट्रक तो  नहीं  बन  रहे ??? चलिए  इस कहानी से सीख लेते हुए हम  खुद  गुस्सा  करने  से  बचें  और  frustrated लोगों  से  उलझने  की  बजाये  उन्हें  माफ़  करना  सीखें .

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