2015-01-08

प्रणाम, अभिवादन, सदाचार

जय श्री कृष्णा

जीवन में एक मित्र श्री कृष्ण जैसा होना चाहिए...
         जो आपके लिए लडे नहीं पर सही मार्गदर्शन ज़रूर देता रहे.........

प्रणाम

अभिवादन (प्रणाम) सदाचार का मुख्य अंग है, उत्तम गुण है। इसमें नम्रता, आदर, श्रद्धा, सेवा एवं शरणागति का भाव अनुस्यूत रहता है। बड़े आदर के साथ श्रेष्ठजनों को प्रणाम करना चाहिए।

मनु महाराज ने कहा है, 'वृद्ध लोगों के आने पर युवा पुरुष के प्राण ऊपर चढ़ते हैं और जब वह उठकर प्रणाम करता है तो पुन:प्राणों को पूर्ववत् स्थिति में प्राप्त कर लेता है। नित्य वृद्धजनों को प्रणाम करने से तथा उनकी सेवा करने से मनुष्य की आयु, बुद्धि, यश और बल – ये चारों बढ़ते हैं।' (मनु स्मृतिः 2.120.121)

  • 'आह्निक सूत्रावलि' नामक ग्रंथ में आता हैः छाती, सिर, नेत्र, मन, वचन, हाथ, पाँव और घुटने – इन आठ अंगों द्वारा किये गये प्रणाम को साष्टांग प्रणाम कहते हैं।'
  • भाई तो साष्टांग प्रणाम कर सकते हैं परंतु माताएँ बहने साष्टांग प्रणाम न करें।
  • 'पैठीनीस कुल्लूकभट्टीय' ग्रंथ के अनुसारः 'अपने दोनों हाथों को ऊपर की ओर सीधे रखते हुए दायें हाथ से दायें चरण तथा बायें हाथ से बायें चरण का स्पर्शपूर्वक अभिवादन करना चाहिए।'
  • देवपूजा व संध्या किये बिना गुरु, वृद्ध, धार्मिक, विद्वान पुरुष को छोड़कर दूसरे किसी के पास न जाय। सर्वप्रथम माता-पिता, आचार्य तथा गुरुजनों को प्रणाम करें। (महाभारत, अनुशासन पर्व)
  • जब श्रेष्ठ व पूजनीय व्यक्ति चरणस्पर्श करने वाले व्यक्ति के सिर, कंधों अथवा पीठ पर अपना हाथ रखते हैं तो इस स्थिति में दोनों शरीरों में बहने वाली विद्युत का एक आवर्त्त  (वलय) बन जाता है। इस क्रिया से श्रेष्ठ व्यक्ति के गुण और ओज का प्रवाह दूसरे व्यक्ति में भी प्रवाहित होने लगता है।
  • जो महापुरुष चरणस्पर्श नहीं करने देते उनके समक्ष दूर से ही अहोभाव से सिर झुकाकर प्रणाम करना चाहिए तो उनकी दृष्टि व शुभ संकल्प से लाभ होता है। परन्तु इस ग्रुप में किया जाने वाला प्रणाम अजीब है जब दिल करे तब  ओर जिसकी याद आ गइ तब ओर नहीं तो पुरे ग्रुप को ही प्रणाम में लपेट लेते है । इस तरह के प्रणाम का कोइ महत्व नहीं है कोइ त्योहार हो विशेष दिन हो या बहुत दिनों बाद विशेष आदमी हो तो प्रणाम किया जा सकता है अन्यथा साक्षात मिलने पर ही प्रणाम किया जाता है ओर सारथक भी वही है

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