2015-01-14

मकर संक्रांति पर्व

मकर संक्रांति पर्व

मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को अत्यंत श्रद्धा से मनाया जाता है । इस दिन से सूरत क्षितिज से ऊपर जाने लगता है यानि दक्षिण से उत्तर की तरफ जाने लगता है। सूर्य के उत्तरायण होने से सौर ऊर्जा ज्यादा मात्रा में धरती तक पहुंचती है। कहते हैं इस दिन स्वर्ग का द्वार खुलता है। इस दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं । हेमन्त ऋतु  खत्म होती है और शिशिर ऋतु की शुरूआत हो जाती है। इस दिन श्राद्ध कर्म और तीर्थ स्थान जाना बेहद फलदायी माना जाता है।  इस दिन तिलकुट और खिचड़ी का भोग लगाकर भगवान की पूजा की जाती है और संक्रांति के दिन दान-पुण्य का भी खासा महत्व होता है  



पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।

एक अन्य पुराण के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।


मकर संक्रांति पर्व के समय ही पतंगोत्सव की परंपरा भी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा आदि राज्यों में प्रचलित है। सुबह से शाम तक आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से ढका रहता है। खूब पतंग प्रतियोगिताएं आयोजिक की जाती है और पेंच ल़ड़ाए जाते हैं।

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