2015-01-04

मन की बात

मन की बात
आज न जाने क्यूँ मन कुछ उचट सा गया है।
आत्म मंथन की खातिर दिल मचल सा गया है।

सैंकडो मील दूर बैठे किसी इंसान के Last seen at…
की हमें खबर है ,
मगर अपने ही घर के किसी कमरे में बैठे बूढे पिता जी को कब देखा था……याद नहीं।

हमारे बुज़ुर्ग माता-पिता कई बार हमें करीब से निहार कर अपने कमरे में चले जाते है,
और हम अपने स्मार्ट फ़ोन में नजरें गडाए उन्हें नजर अंदाज कर देते है।


हमें मालूम है कि हमारा फलाँ दोस्त इस समय typing………
मगर ये नहीं पता कि बाज़ू वाले कमरे मे बेटा पढाई कर भी रहा है या नहीं।

हम सुबह उठते ही अपने फोन पर सैंकडो लोगों को Good morning wish करते हैं ,
मगर चाय का प्याला देने आई बीवी को आप Thanks  कहना भूल जाते है।

पार्क की बैंच पर अपने बीवी बच्चों के साथ बैठ कर ठहाके कब लगाए थे--याद नहीं।
Whatsapp पर joke share कर के तो हम रोज हंसा  करते हैं .

बीवी कितना ही अच्छा और ताज़ा खाना परोस दे हम तारीफ़ नही करते
जबकि किसी दोस्त के महीनो पुराने बासी forwarded मैसेज पर हम तुरंत
कमैंट कर देते है।

हमें अपने परिजनो के लिए उनकी पसंद की कोई चीज पास की दुकान से लाने में आलस महसूस करते हैं।
जबकि Playstore से कोई app ढूँढने में हम घंटो बिता देते हैं।

आज हमारे पास Virtual friends की विशाल दुनिया है।
जबकि वास्तविक दोस्तो का अभाव है।

हम facebook twitter पर अपने followers या  likes को देखकर फूले नहीं समाते
जबकि सच तो ये है कि हमारे खुद के बच्चे तक हमे like या follow नहीं करते।

आज हम social दिखने के चक्कर में Social media के मकड़ज़ाल में इस कद्र उलझ गए हैं कि अपने family से familiar होने का वक्त नहीं या यूं कहूं  हम जमीनीं रिश्तों को भूला बैठे है।

 "हो सकता है मेरे मन की ये बात आप के मन को भी झकझोर दे"-

तो आत्म-मंथन करना

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