2015-01-04

फर्क सिर्फ इतनासा था

फर्क सिर्फ इतनासा था।

तेरी डोली उठी, मेरी अर्थी उठी
फूल तुझपरभी बरसे, फूल मुझपरभी बरसे
फर्क सिर्फ इतनासा था।
तू सज गयी, मुझे सजाया गया ।

तू भी घरको चली, मै भी घरको चला
फर्क सिर्फ इतनासा था।
तू उठके गयी, मुझे उठाया गया ।


मेहफिल वहाँ भी थी. लोग यहाँ भी थे
फर्क सिर्फ इतनासा था।
उनका हँसना वहाँ, इनका रोना यहाँ ।

काजी  उधर भी था, मौलवी इधर भी था,
दो बोल तेरे पढे, दो बोल मेरे पढे,
तेरा निकाह पढा, मेरा जनाजा पढा
फर्क सिर्फ इतनासा था।

तुझे अपनाया गया, मुझे दफनाया गया
फर्क सिर्फ इतनाही था।

                                          ''अज्ञात  कवि''

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