2015-01-14

वक़्त - कविता

एक प्यारी सी कविता - वक़्त पर ...

" वक़्त नहीं "

हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में ,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं .
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं ..
सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं .
गैरों की क्या बात करें ,
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं .
आखों में है नींद भरी ,
पर सोने का वक़्त नहीं .
दिल है ग़मो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
कि थकने का भी वक़्त नहीं .
पराये एहसानों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
कि हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिये भी वक़्त नहीं ..


HAVE A MEANINGFUL LIFE...


बिंदास मुस्कुराओ क्या ग़म हे,..ज़िन्दगी में टेंशन किसको कम हे..
अच्छा या बुरा तो केवल भ्रम हे..
जिन्दगी का नाम ही कभी ख़ुशी कभी गम हे।


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