अभिमान, गौरव और प्रतिष्ठा, इन तीनो से दूर रहें
अभिमानं सुरापानं गौरवं रौरवं ध्रुवम।
प्रतिष्ठा शूकरी विष्ठा त्रयं त्यक्त्वा हरिं भजेत॥
प्रतिष्ठा शूकरी विष्ठा त्रयं त्यक्त्वा हरिं भजेत॥
धार्मिक गन्थो में उपरोक्त दोहे में बताया गया है की अभिमान सुरापान जैसा है, गौरव निश्चित ही रौरव (एक नरक का नाम) है। प्रतिष्ठा शूकरी
विष्ठा है। इन तीनों को छोड़कर
हरि भजन करना चाहिये।
यदि हम देखे तो पायेगे कि वास्तव में इन तीनों से अहंकार तृप्ति के सिवा और
कुछ नहीं मिलता। ये अहंकार के भोजन हैं, जितना भोजन मिलेगा अहंकार और मजबूत होता जायेगा और उसी अनुपात में हम
सत्पथ से दूर होते जायेंगे।
हमें अपने जीवन से इन तीनो अभिमान, गौरव और प्रतिष्ठा का त्याग कर देना चाहिए मानव मन
की एक खासियत होती है, जो वो कर रहा है उसे दूसरों की
अपेक्षा श्रेष्ठ समझता है जैसे मेरा देश महान, मेरी जाति
महान, मेरा धर्म महान आदि। हमें इस मेरा और तेरा अर्थात अपने
अभिमान का त्याग कर जीवन को सरल बनाना चाहिए ।
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